हरे ज़ख्म

धूप में, गर्द में

इस जमीं के गर्भ में

निकली है आह कोई

दिल की हर तर्ज़ में

धूप दो ,

छाव दो

छोड़ दो या

तोड़ दो

दिल को हर तरह अभी

इसी जमीन में रौंद दो

जान भी है

हौसला

हुस्न भी

दर्द भी

दिल गँवा सको तो तुम

वक़्त को दफ़न करो

हौसले बुलंद करो

वादों की बिसात क्या

शब्दों का उछाल क्या

जाने बात और क्या

सबको भूल जाने दो

आएगा जो आएगा

पल भी देख लेंगे हम

तुम रहो न रहो

हमको हो मलाल क्या

जाने क्यूँ ये कह दिया

जाने क्यूँ वो सुन लिया

शब्दों के जाल का

ख़त्म करो सिलसिला

आज डूब जाने दो

सारे जख्मों को यहीं

आज दिल नहीं मेरा

फिर कभी , फिर कहीं

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