माँ

मैंने जना था उसे
सूक्ष्म से स्थूल तक
पनाह दी

वक़्त को थाम दिया
जब अपने शरीर में
फला था उसे

न मैं थी
न मेरा वजूद था
बस तुम ही तुम थी

नन्ही सी कली
मेरे अंश से निकली
एक सुन्दर सी परी

छोटे छोटे खिलोनो से
कैसे ऊबती थी तुम
एक चुनरी और पाजेब लेके
कैसे घंटों झूलती थी तुम

नन्हे पैरों से
मेरी दिल की सूखी ज़मीं पे
बरसती थी तुम

वक़्त बढता ही गया
कितने मौसम आये

तुम्हारे प्यार का मौसम भी आया
जो हमे ना भाया

क्योंकर तुमने हिम्मत की
अपने ही गोत्र में

क्या प्यार को समझा नहीं सकती थी
की दूसरा कोई गोत्र खोजो

ये लड़का जो पसंद है मुझे
इसका मजमून बदल दो

मेरी माँ और पिता की
पुश्तों से
इसे अलग कर दो

इतना गुरूर तुम में
किस प्यार ने पैदा किया

हमसे जनि और हमसे ही न माने
फीर एक रात मौका देख
तुम्हे मौत सुनाई
पंचायत ने करी
हमारी इज्ज़त की रुसवाई
मुझे किया गुनाहगार

जिसको पाला था मैंने
अपने हाथों का छाला
बनाकर

उसी का गला घोटूं
जल्लाद बनकर

गयी रात
मार दिया मैंने उसे

तोड़ दी उसकी सासे

मिटा दी उसकी आखों से
वो रौशनी
जो मुझे कभी रास्ता दिखाती थी

तुमने कितनी मिन्नतें करी
मैंने न सुना

अपने जिगर के टुकड़े को
काट दिया मैंने

गयी रात मार दिया मैंने ही उसे

गयी रात मार दिया
मैंने ही मुझे

अब एक ज़िंदा लाश हूँ

सास लेतीं हूँ
तुम्हारी साँसों की गिनती करके

रोज़ तुम मिलने आती हो मुझसे
मेरे ख्वाबों में
खिलने आती हो
मुझे हिला जाती हो तुम

अब मैं हूँ, मेरी इज्ज़त है
कोई नहीं आता यहाँ पे

इस सूने शमशान से घर पे
कोई नहीं आता

बस तुम आती मेरे ख्वाबों में.....



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