काला रंग

चलूँ
काली श्याम के अँधेरे
गले से नीचे
उतरने लगे हैं

अपने आप को समेटू
और चलूँ

अपने जिस्म की खुशबू
वापिस रखूँ
और अपने ख्वाबों की गर्मी
उन पत्तों में लपेटू
तो चलूँ

अपनी आखों की
बदमाशियों को
छुपा दू
अपने लहू से
दो बूँद टपका दूं
इस रिश्ते पे डालूँ
तो चलूँ

थोडा रो लूं
अपने ग़मों को हसीं में छुपा लूं
अपने आँचल की गंध को
तुम्हारी गंध से अलग कर लूं
तो चलूँ

अपनी सोच का दामन
तुमसे बचा लूं
तुम्हारी दूरी की खलिश को
दिल से मिटा दूं
तो चलूँ

उस आलिंगन की हरकत
जो दिल में उतर गयी थी
निकालूँ तो चलूँ

मेरी सोच
और तुम्हारी सोच
के सेतु को तोडू
अपने गेसूयों की महक को
तुम्हारी सासों से चुरा लूं
तो चलूँ
तुम्हारे दिल की धड़कन
अपने कानो से उतारूं
तो चलूँ

चल रही है दुनिया पूरी
क्यों न मैं भी चलूँ

कैसे चलूँ ?

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