ब्रह्म का आभास है, तो भ्रम का त्याग कर

ब्रह्म का आभास है

तो भ्रम का त्याग कर

वक़्त रहते, होश अपने

अनगिनत संभाल ले

राह में कितने ही

सर्प आते है, आयेंगे

आदमी वो है जो

इनको हर तरह पहचान ले

क्या हूँ मैं, कौन हूँ

किसलिए आया हूँ

क्या तुम्हे और क्या मुझे

जहाँ ये बतलायेगा

मिटटी से उत्पन्न हुआ तू

मिटटी में मिल जायेगा

कुछ तो ज़िन्दगी का

हौसला उधार ले

वक़्त रहते होश अपने

अनगिनत संभल ले

रोज़ आती है मुश्किलें

रोज़ आते है मकाम

द्वंध ये चलता रहेगा

दिल और दिमाग में

क्या हुआ मेरा
जो मुझमे पहले नहीं था

क्या हुआ तेरा

जो तूने सोचा नहीं था

आज कल और बरसों में

बीतेगी ज़िन्दगी

पानी की धार है यह

रोक तुम सकते नहीं

बह गया तो बह गया

जो रुक गया वो नर्क है

दिल को अपने थाम कर

ब्रह्म का आभास कर

बैठती है खूबसूरत

ख्वाहिशें हर राह में

मोह माया है यहाँ

हर एहसास में

राग इर्ष्या द्वेष

मिलते हैं बाज़ार में

अहंकार की कमी

है नहीं

संसार में

शून्य अपने आप को

कर के तो देख ले

एक बार ज़िन्दगी को

ब्रह्म हो के देख ले

ब्रह्म का आभास है

तो भ्रम का त्याग कर

वक़्त रहते, होश अपने

अनगिनत संभाल ले

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