तुम चलोगी?


आओ आज हम दोनों
इस बेमौसम बरसात में
अपने अपने गम भिगो ले

तुम अपनी सारी का एक कोना
काट के फेक दो
इस सुलगती आग पर
जिससे कभी तुमने
पोछे थे उसके आँसू

मैं भी अपने दिल से
निकालू उस भूली याद को
जब उसने मुझे कातिलाना नज़रों से
देखा था पहली पहली बार

तुम भी
दिल को नश्तर करती
उस शिकायत से पूछो
क्या तुमने भी कभी मुझे याद किया
या मैं ही सुलगती रही रात भर
उम्र भर

मैं भी उस बूढी ईमारत के सूखे पेड़ से
जा के पूछूंगा
तुमने तो देखा था हमे
क्या कमी रह गयी थी मुझमे

क्यों मिल गए ये सूखे दिन
ये भूली रातें
मुझे सौगात में

तुम भी कह दो
उन हवाओं से

ना उलझाये तुम्हारी जुल्फें यूं
की उलझ जाती है तुम्हारी आरज़ू
इन्ही जुल्फों की कैद में

आओ आज सब गिले शिकवे
यहीं इसी आग में भस्म करें

इन हवाओं को बाँट ले आधा आधा
इन बूंदों से पूछे एक नया रास्ता

और एक नयी ज़िन्दगी का पता लिखे
रेगिस्तान की मिटटी पर
पानी के अक्षर से

एक साथ

तुम चलोगी ?

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