फिर से ये खलबली सी क्यों है

फिर से ये खलबली सी क्यों है
साँसे बार बार आ के उखड़ी सी क्यों हैं

आहों को कुछ समझ नहीं आता
फिर ये तनहा इंतज़ार
दिल में टीस सी क्या हैं

फिर से क्यों पसंद आया है
ये नामुमकिन गर्मियों का मौसम
फिर से बादलों को तवज्जों क्यों है

इन पीले फूलों के गुच्छे
क्यों कसक सी उतारते हैं दिल में
और गुलमोहर की लाली
फलक के रंग लेके आई हैं

क्यों ये तड़प उठी फिर घबरा के
कुछ कर गुजरने की ये
फिर उल्फत क्या है

उफ़ ये क्यों नए से लगते हैं
सारे पुराने नज़ारे

कभी खुशबू कही नज़र
कही बातों का है जादू
एक पल की उदासी
सदियाँ पार के आई है

और चुपके से भर देती है दिल को
नम है आखें
नम है दिल
नम है सारा जहाँ

कोई सिरा नहीं मिलता
कोई सिला नहीं मिलता
कोई वजह नहीं
कोई फरक नहीं

सब डूबा डूबा सा है
कभी आसूओं के रंग में
कभी दिलकशी के रंग में

कहीं धूआ धूआ सा है चारों तरफ
और कभी खिलती है धुप इतनी हस के दूर तलक

कुछ इस तरह से
उतरते हो मेरे दिल में तुम
गुनगुनाती है धुप
परछाइओं में गुम

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