इतने बड़े संसार में कोई भी पूरा नहीं !
इतने बड़े संसार में कोई भी पूरा नहीं !
सब अधूरे से है !! कोई भी हीरा नहीं !
ज़ख्मों को अपने ऐसे समेटे चलते है
थाम के वक़्त को अपने में लपेटे चलते है
क्या सोचे, क्या कहे ..... सभी के घाव जलते हैं !!
धुंध सी रहती हैं आखों में कहीं
ख्वाबों को फिर भी पिरोतें रहते है
आखों से निकलते नहीं आँसू
ज़ख्मों को बतोरतें रहते है
दिल की बातों का मतलब नहीं समझते
शरीर के वाकिफों को तोल्तें रहते हैं
अपनी ही सलीबों को जिन्हें उठाने की हिम्मत नहीं
उन्हें हम क्या फफोलते रहते हैं
वक़्त के दरिया में
कितने हमसफ़र
डूब के तैरते रहते हैं
कैसी ये दुनिया बनायीं ऐ खुदा
हर आदमी अपने ज़ख्मों का
मरहम ढूँढता है यहाँ
कभी धन में, मद में, मदिरा में, मंदिर में,
किसी के आगोश में,
और कोई तेरे दर पे आ जाता है अपनी धुन लेके !
टूटे टूटे से मिलते है यहाँ शीशे हर तरफ
किस्मे देखे अक्स अपना
किसको बनाये हमफिकर
हे प्रभु, ये क्या लीला रचाई तूने
सभी को अधुरा बनाया, सभी को घाव दीने
इतने बड़े संसार में कोई भी पूरा नहीं !!
सब अधूरे से हैं कोई भी हीरा नहीं !!
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