कभी सुबह की, कभी शाम की,
कभी तो शिकस्त हो इस नाम की,
यह क्या सज़ा है दोस्तों,
न सुध है दीनो ईमान की,
जो तन के वो है चल रहे
बीचो बीच बाज़ार के
हम छुपते फिरते है अपने
जज्बात ले के किनारों पे
यह कैसी खुदाई तूने दी
इन बेशर्म लोगों को
जो बेसबब कुचलते हैं
दिल के एहसासों को
कभी तो तुमको भी मिले
एक ऐसी सज़ा खुदा से
कभी तुम भी लेके दिल फिरो
इन अँधेरे गलियारों में
दर्द-एह-कोफ़्त दिल को हो
और हस्ते रहों तुम यारों में
फीर ढूँढो तुम हमें भी
लेके चिराग हाथों में
Comments
Post a Comment