khamoshiyan
बहुत से फलसफे है ज़िन्दगी के कितनी खामोशियों के बीच पैदा हुए इतने घुटे हुए अरमान है अपने ही अरमानों की शक्ल नज़र नही आती इस धुंधले शीशे पर कुछ गुंजाइश बची थी शायद जो धूल का एक ढेर आया और एक नई परत जमा गया टूटे मिटटी भरे आईने में कुछ देखने का अरमान ही नही कौन कहता है गालिब के सिवा और अभी और अभी