उस सूनी ईमारत की
टूटी हुई खिड़की पर
बारिश की बूंदे गिर गिर कर
जाने किसको देती हैं आवाजें
कोई आएगा कौन आएगा
क्यूँ है इतना इंतज़ार
किन ख्वाबों का गीलापन सूख गया
वो गिर के टूट गए
कितने ही हसीं लम्हों का
हर पल खुशी का डूब गया
हर रोज़ जो सूरज डूबता हैं
इक दिन तो नया उभरता है
इस मन के अंधेरे पलों का पर
नया सूरज नही उभरेगा
इतना ही है, कितना ही है
साथ हमारा तुम्हारा तो
फ़िर टूट नहीं जाते क्यूँ
ये बंधन अनजाने
सब उड़ते फिरते अरमानो का
इस वक्त ही घोट दो गला
क्यूँ बार बार इस चिंगारी
को मिलती है फ़िर यूँ हवा
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